एक बार फिर भावनाओ में बहने की कोशिश…
वो आँखो मे अश्क और चेहरे पे मुस्कान लिए बैठी है
मैं मंद समीर, वो आज भी पुराना तूफान लिए बैठी है
मैं चेष्टा भी कैसे करता , उसे खुद का गम बताने की
रे गम तो थे, पर वो खुद गमो की दुकान लिए बैठी है
मैं उसकी हर बात मान लेता बस वो कहती तो सही
कमबख्त मेरी हर बात में मेरा इम्तिहान लिए बैठी है
मैं वायदे भी करता, तो किस तरह, अपनी सांसो के
बस में ना था मेरे वो पहले ही मेरी जान लिए बैठी है
हाँ मैंने कई दफा की कोशिश उसे अपना बनाने की
जाने क्यों वो तो नफरत का तीर कमान लिए बैठी है
भूलना मुमकिन नहीं , भुलाने की कोशिश करता हूँ
ये सोचकर कि वो गुरुर का ऊंचा मचान लिए बैठी है
मैं ख्वाब में भी , उसकी लंबी उम्र की दुआएं करता
करूँ क्या मैं अब जब वो खुद शमशान लिए बैठी है
#गुनी…