मन के इधर उधर के ख्याल …. बडो से आशीर्वाद एवं छोटो से स्नेह निवेदित
सुनो मगर ये मत सोचना कि कोई नज्म है
दिखाई नहीं देते, सीने में मेरे ऐसे जख्म है
इश्क हो और अश्क न हो कहीं निगाहो में
लगता है यकीनन, ये कोई पुरानी रस्म है
मेरी रुह को ना सजा दो , मेरे गुनाहो की
फिजूल तो साहब , महज मेरा ये जिस्म है
महजब के कैदखानो में कैद मुजरिमो
तुम्हारी हदो से परे है, इश्क वो तिलिस्म है
इश्क के परिंदों को , अब उड़ान भरने दो
इंसानी है रुह या तुम्हारी और ही किस्म है
#गुनी…