दो शीश

लहरे तिरंगा सीमा पर वीरो की बसती इसमें जान
खुद को करे निछावर , ये ही रखे मेरी माँ का मान
कोई इनसे पूछो जो चुप बैठे देख रहे हैं दिल्ली में
दो शीश कटाकर भारत की बढ़ जाती है कैसे शान

न समझो बुजदिल हमको , हम करते सबका सम्मान
खेर मनाओ गाँधी भी यही हुए थे दे गए अहिंसा ज्ञान
इन छोटे – छोटे लोहे के औजारों से हम न घबराते हैं
मगर शीश कटे तो, इस बार तुम्हारा मिटा देंगे निशान

#गुनी …

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