दरोगा जी — अंक – 1

हर बार की तरह इस बार भी दरोगा जी अपने घर पर अपनी बीबी की डांट फटकार खाकर सब्जी खरीदने के लिए बाजार जा रहे थे मन ही मन बडबडा रहे थे कि सुबह होती है और ये मुझे सुनाने लगती है। उधर दरोगा जी की बीबी भी कुछ कम नहीं है वो भी घर में जोर जोर से चिल्ला कर दरोगा जी को गालियाँ देने में कमी नहीं छोड़ रही। इतने में एक आदमी बहार दौड़ता हुआ एक हिंदी समाचार पत्र बेचता हुआ जाता है।

समाचार पत्र विक्रेता — (चिल्लाते हुए) एक दरोगा को दिन दहाड़े गोली मारी।
सीमा पर 2 सैनिको के सिर काटकर ले गया कोई।
शहर में हुई धार्मिक हिंसा।

दरोगा जी की बीबी घबराकर घर के बहार आई और अखबार वाले को खोजने लगी। लेकिन अब तक अखबार वाला तो मौहल्ले की दूसरी गली भी पार कर चुका था। अब दरोगा जी की बीबी को अपनी दरोगा जी की सुध आई और मन में गलत सलत विचारो का घेरा बन रहा था। दरोगा जी कब सब्जी लायेंगे क्या वे बाजार में पहुँच गए होंगे क्या वो सही भी होंगे वो तो वैसे भी लड़कर गए हैं। अब उसे दरोगा जी की चिंता सता रही थी और उससे रहा न गया। वह सब छोड़कर बाजार की तरफ दौड़ी की एकाएक एक बड़ी सी गाड़ी आकर दरोगा जी की बीबी से सटकर निकल गयी। दरोगा जी की बीबी के होश उड़ गए और मन में जो गलत सलत विचारो ने रास्ता बना लिया था अब वो और भी उबड़ खाबड़ हो चुका था। अब दरोगा जी की बीबी की चलने की गति और दिल के धडकने की गति दो गुनी हो चुकी थी। आखिरकार दरोगा जी की बीबी बाजार पहुँच गयी और खोजने लगी दरोगा जी को उसकी आँखें अब नम हो आई थी और खुद को बेबस और लाचार मान रही थी पूरी सब्जी मंडी में देखते देखते अब दोपहर बीतने को आई लेकिन दरोगा जी का कुछ पता न लगा।

दरोगा जी की बीबी की हालत अब ऐसी थी कि वह घर जाने की हिम्मत भी न जुटा पाई। थक हार कर एक दुकान पर जाकर बैठ गयी और कुछ कह न सकी न गले से आवाज निकल रही थी न साँस आ पा रही थी। अचानक कहीं से एक छोटा सा बालक फटे हालत में आया और दरोगा जी की बीबी से बोला — माँ क्या हुआ(नम्र और मासूम आवाज में) , लो पानी पी लो

औरत तुरंत बोली बेटा कुछ नहीं थोडा थक सी गयी हूँ
(औरत को कोई बच्चा नहीं था)

इतने में औरत के मन में एक सवाल आया

औरत – बेटा तू कौन है ? कहाँ से आया है?
बालक – माँ में तेरा बेटा हूँ और (मासूमियत) घर से आया हूँ।
औरत – नहीं नहीं बेटा तू है कौन ?
बालक – बताया तो मैं तेरा बेटा हूँ।
औरत – अरे बेटा तू हिन्दू है या मुस्लिम या कोई और ????
बालक इस बात से बिलकुल अनजान था कि जिसे वो माँ कह रहा था वो तो उसमे भी हिन्दू और मुसलमान खोज रही थी…

उधर दरोगा जी सारी सब्जी लेकर कब के घर पहुँच गए थे और खुद ही खाना खाकर दफ्तर के लिए चल दिए

मगर औरत अभी भी बालक से यही पूछ रही थी , “बेटा कौन है रे तू???
बालक फिर बोला माँ मैं तेरा बेटा ही तो हूँ।

औरत नहीं मानी और फिर कहा – कौन है तू बताता क्यूँ नहीं ??
बालक – लड़का भागकर गया और एक पत्थर सर पर मारकर दिखाया

पत्थर लगते ही लड़के के सर से खून बहने लगा तब लड़के ने औरत से कहा – माँ मेरे खून का रंग तेरे खून जैसा ही है मैं तेरा बेटा ही हूँ

औरत रोने लगी और कहने लगी बेटा मुझसे गलती हुयी जो नहीं पता था एक बच्चा इतना सच्चा हो सकता है अभी अभी एक खबर सुनी थी कि धार्मिक हिंसा फ़ैल रही है बस मैं उसी के बहाव में पागल हो गयी थी मुझे माफ़ कर दे।

मित्रो दरोगा जी की बीबी ने माफ़ी मांग ली और उसे समझ आ गया कि कोई हिन्दू नहीं कोई मुसलमान नहीं हाँ सब इन्सान हैं और एक बच्चा उसने भी बता दिया की दुनिया की हर बूढी औरत माँ है।

लेकिन पता नहीं हम कब सुधरेंगे कब सीखेंगें।

#गुनी … कहानी रचना (गुरमीत सिंह ‘गुनी)

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