करूं क्या शायद इंजीनियरिंग पढना नहीं आता
सब्जेक्ट बहुत हैं इंजीनियरिंग के
मगर ये लाचार दिल
कोइ पसंद ही नहीं आता
कभी सी.एस. का कम्प्यूटर
तो कभी सीविल का सीमेंट
मैकेनिकल की मशीन
इलेक्ट्रिकल की इलेक्ट्रिसिटी
अंत में आइ.टी. की इन्फोर्मेशन को भी
मैं बचा ही नहीं पाता
सोचा था सैकंड इयर में कुछ बोझ हल्का हो जायेगा
पर क्या पता था ये बौझ बैक की पहली सीढी दिखलायेगा
अब तो लगता है पढना भी मजबूरी है
और शायद यही देश की कमजोरी है
सोचा थर्ड इयर तक तो जरूर ही कुछ हो जाएगा
अब तो बहुत मजा आयेगा
गुरू भी मोटर में कुडी घुमायेगा
पर किसे पता था कुछ होने से पहले ही ब्रेक अप ही हो जायेगा
अंत में आया फाइनल इयर
साथ में लाया एक बेकार से स्कूटर को गियर
अब चिंता थी टेनिंग प्लेसमेंट की
जरूरत थी बैंक बैंलेंस की
जो हमारे पास नही था
इसीलिए आउटर मास्ट शैल भी वैलेंस ही पडा था