महोतरमा, ये हमारे सीने में तुम्हारा मकान तो नहीं
परायी अमानत के साथ जीना भी आसान तो नहीं
देख लिया करते थे, हर हिस्सा तुम्हारी दुनिया का
संभलकर देखना ज़रा कहीं ये वही मचान तो नहीं
जब से चली गयी हो महज कुछ ही पलो के वास्ते
आईना नहीं जानता, कहीं तुम ही पहचान तो नहीं
दिल सा धड़कता था , सांस भी चलती थी शायद
मगर अब नहीं कम्बख्त जिस्म मेरा बेजान तो नहीं
कुछ खो गया कहीं मेरा शायद , मालूम नहीं क्या
देख लेना तुम्हारे पास हमारा कोई सामान तो नहीं
तुम्हारी निगाहों का कोई जवाब नहीं मेरे इशारो में
एक दफा लगा कहीं ये मेरे इशारे बेजुबान तो नहीं
वैसे तो बखूबी वाखिफ हैं हम तुम्हारी हर अदा से
पर सवाल है तुम्हें भी खुद पर कोई गुमान तो नहीं
तुम समंदर हो , लहर हो या फिर सितारा हो कोई
चाँद सी लगती हो तुम खुद मेरा आसमान तो नहीं
अच्छा……! लिख तो रहा है गुनी तुम्हारे वास्ते ही
ये बताना, कहीं इस तरह तुम्हारा अपमान तो नहीं
#गुनी…