उम्मीद में मैं निकल गया खतरनाक राहो पर
इश्क को मेरे खतरो से खेलने की आदत थी
वो जो कत्ल करती गयी मेरी सारी मुरादों का
उसके सपनो मे गुजारी रात मेरी शराफत थी
वो रौनक हो गयी किसी महल की दीवारो की
खुद उन दीवारो को सजाया मेरी इबादत थी
कई दफा समझाया मुझे न इश्क कर फूलो से
मैं माली बन सवारता गया बस मेरी चाहत थी
बेसक कितने भी हो शूल यहां फूल महकते हैं
ना बदलने वाली फिजा है बस ये ही राहत थी
अपने अश्को को उसकी निगाहो मे देखा फिर
दिये की लौ ने जलाया जाने कैसी बगावत थी
मैं महज इस उम्मीद मे लिख रहा हूँ आज भी
कुछ पल को गयी है वैसे तो मेरी अमानत थी
तुफानो के बीच रह कर जिंदगी बसर कर दी
सिर्फ इसलिए कि ये उसकी मुझे हिदायत थी
#गुनी…