विद्यालय और घोटाले

ये घटना उस समय की है
जब पहली बार हम पास के पूर्व विद्यालय में दस्तक दे रहे थे
हमारे अध्यापक भी बच्चो को आपना आधा मस्तक दे रहे थे
बच्चो को कुछ समझ नहीं आ रहा था
एक एक अक्षर सर के ऊपर से जा रहा था
के अचानक अध्यापक की नजर हम पर पड़ी
उनकी आँखे में चमक की लहर दौड़ पड़ी
उन्हें लगा हम बुद्धिमान हैं
हमको बहुत ज्ञान है
लेकिन हम भी बड़े चतुर थे
हम नहीं हैं ज्ञानी बताने को आतुर थे
अध्यापक बोले क्या आता है तुम्हे ये सवाल
हमने उठाया प्रश्न गर आता हमे तो क्यूँ होता बबाल
इतने बड़े होकर हम स्कूल में ही आते
अरे मास्टर जी हम भी किसी कॉलेज में न चले जाते
मास्टर जी आप भी कैसी बात करते हो
आप हास हमारे साथ करते हो
हम कितने नादान हैं
क्या आपको इसका नहीं अनुमान है
जाईये जाकर पुछिये विद्यालय की लडकियों से
टूटे दरवाजो और झुलाती खिडकियों से
ये सुनकर मास्टर जी का दिमाग चकराया
मास्टर गुस्से में मुझ पर गुराया
मास्टर जी बोले चलो प्रिंसिपल सर के पास
हमने पूछा क्या वहां घोटाले के लिए रखी है घास
मास्टर फिर चिल्लाया बोला क्या कह रहे हो क्या बोला
हमने कहा कोई बात नहीं घास नहीं बस लाकर देदो कोयला
मास्टर की नींद खुल गयी और हडबडाया
कहने लगा क्या हो रहा है देश में अभी समझ आया
अरे कहाँ से होगी तरक्की देश में पड़ रहे हैं लाले
क्यूंकि हम जैसे छात्रो ने बचपन में ही सीख लिए थे घोटाले

#गुनी…

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