वरदान समझता हूँ

शुभ संध्या…., पुराने अंदाज में नया मुक्तक निवेदित

हो समर्पित जीवन माँ को, इसमे अपनी शान समझता हूँ
हिन्दी का हूँ पुजारी मैं हिन्दी को अपना मान समझता हूँ
ना शब्द, ना कागज, ना कलम, सिर्फ दिल से लिखता हूँ
तुम्हें जो लगे, मैं इसे माँ सरस्वती का वरदान समझता हूँ

#गुनी…

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