कुछ इतराती हैं कुछ इठलाती हैं
कुछ खुशी में कुछ गम में भी काम आती हैं
जब भी मिलता हूँ मैं इनसे ना जाने क्यों,
एक मधुर गीत हमेशा ही गाती हैं
ये लडकियां मेरे कालेज की
कुछ सपनो में आती है
कुछ सच में मिल जाती हैं
जब कभी पुकारूं मैं इनको ना जाने क्यों,
दौडी चली आती हैं
ये लडकियां मेरे कालेज की
कभी कभी ये चाय पिलाती हैं
कभी काफी भी मंगवाती हैं
जब कभी मांगू दूध मैं इनसे ना जाने क्यों,
घर से ही ले आती हैं
ये लडकियां मेरे कालेज की
कभी तो ये पराठा भी खिलाती हैं
कभी तो ये उतपम भी पकवाती हैं
जब कभी मांगू मैं डोसा इनसे ना जाने क्यों,
ए.टी.एम. ही दें जाती हैं
ये लडकियां मेरे कालेज की
वैसे तो ये दिन में भी डराती हैं
फिर मिलने से शर्माती हैं
और जब कइं हफते ना मिल पाउं इनसे ना जाने क्यों,
रात को भी मिल जाती हैं
ये लडकियां मेरे कालेज की
कभी हास्टल से बहार नहीं आती हैं
अपने बी.एफ. तक को भुला जाती हैं
और हो कोइ हैण्डसम आलाइन ना जाने क्यों,
एक्जाम में भी एफ.बी. चलाती हैं
ये लडकियां मेरे कालेज की