ये मेरा पहला प्रयास है। मेरी एक रचना जिसकी वजह से मैं यहाँ तक पहुंचा हूँ उसी को गीतिका में ढालने की कोशिश की। क्यूंकि रचना गीतिका से मेल खाती हुयी थी अतः अगर सफल रहा तो बहुत अच्छा अन्यथा अच्छा और मैं गीतिका के लिए प्रयासरत रहूँगा। मेरी इस कृति पर सभी से निवेदन है समीक्षा अवश्य दें। ताकि मैं इसे और अच्छा रूप दे सकूँ।
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भारत माँ का वंदन, नया विहान होने दो
आज फिर तय, एक नया संविधान होने दो
जिन्दगी ये नीलाम हो जाएगी चंद रोज में
धरती ये आज फिर बस लहू लुहान होने दो
बच्चे से हम किशोर हुए जो मातृ प्रेम में
अब किशोरो को पर्वत सा महान होने दो
शहीद हो जाते हैं वीर आजादी के मार्ग पर
आज इन वीरो को पेड़ो सा दयावान होने दो
मुँह तोड़ जवाब देना है हैवान की हैवानियत को
मार सकें दुश्मन फिर से वो तीर कमान होने दो
खुली आँखों से भी मैं सपने देख लेता हूँ आजकल
देखे मेरे ये सपने हर नौजवान ऐसा ऐलान होने दो
मर जाएँ मिट जाएँ बस माँ के लिए बदनाम हो जाएँ
फिर एक भगत सिंह और आजाद का नाम होने दो
बो दो बीज खलिहानों में ऐसी कुर्सी की बगावत का
आज फिर देश के भूखे भेडियो को परेशान होने दो
तन पे बेसक निशान पड़े, तोड़ रहे बाजु-ए-दुश्मन
लगने दो लाशो का मेला एक और शमशान होने दो
गाओ आज गुनी के इन संस्कारो को एक स्वर ताल में
मिटा दो भ्रष्टाचार, सोने की चिड़िया का निर्माण होने दो