खामखाँ नहीं…

एक अदना सी कोशिश हमारी भी…

खामखाँ नहीं अपने दिल का हाले समाचार लिख रहा हूँ
मैं, दर्द को अपने हर बार की तरह इस बार लिख रहा हूँ

देख हकीकत में कहानी लंबी हो जायेगी फिर न कहना
मैं बैठकर अपनी पुरानी यादो का अखबार लिख रहा हूँ

कम से कम तु आज तो सुन, वाक्या मेरे बुरे हादसों का
जब थक जाना, बस तभी कह देना बेकार लिख रहा हूँ

हाँ लग रहा होगा क्या लिख दिए, फिजूल शेयर यहां पे
सच बताऊँ मैं फिर से मौहब्बत का इजहार लिख रहा हूँ

अरे मैं न सही बस मेरा वो खत ही छु सके तेरे हाथो को
एस. एम. एस के दौर मे मैं फुरसत से तार लिख रहा हूँ

जो खो गया तेरे जाने पे, बेसक वो दिल भी तो मेरा था
वो तभी से लापता है मैं उसी का इश्तिहार लिख रहा हूँ

बात ठीक ठीक ना की हो, बेसक कर लेना बुराई दोस्तो
मगर छु गई हो दिल को कह देना अशआर लिख रहा हूँ

#गुनी…

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