मुझे याद आती है गाँव की बाजरे की रोटी
मीठे स्वाद की, जैसे गुड की ढेली
वो सहेली
जिससे मैं हर बात कह दिया करती थी
सब छोड़ बस साथ उसके खेला करती थी
मुझे याद आती है वो घास की भरोटी
भारी वजन वाली, जैसे लोहे का बाट
वो टूटी सी खाट
जिसपे मैं सो लिया करती थी
परेशानी में उसके पावे पर सर रखकर रो लिया करती थी
मुझे याद आती है बचपन में वो लम्बी चोटी
काले रंग सी, जैसे हो काक
मेरे वो तात
जो रातो खेतो में काम किया करते थे
बस मैं सो जाऊँ इसीलिए थोडा आराम किया करते थे