माँ का प्यारा लाल था वो, जिसने सीमा पर जान गवाई थी
देखकर खून से लटपत सीना, बच्चे का माँ रोई कुरलाई थी
सोचा बस उसने इतना था, काश कि पूत एक और होता
लड़ने भेज देती सीमा पर, बस आशा ऐसी मन आई थी
वीर थे सारे भारत के ही, फिर काकोरी में आवाज उठाई थी
बेडी ना पड़ने देंगे माँ को, खालेंगे फांसी कसमें भी ऐसी खाई थी
सच के ही राहगीर थे वो, सहासी बनकर चल दिए
अन्न के वो सन्यासी थे, फिर शत्रु को मुँह की खिलवाई थी
रातो की तो नींद छोड़ी, ऊँची ईमारत गाड़ी भी ठुकराई थी
एक माँ की गोद से दूर हुए, दूजी माँ की गोदी पाई थी
दर्दनाक थी घडी वो, आवाज गले से ना उतारे बेसक
पीठ दिखाकर ना भागे, गोली सीने पर ही खाई थी
सुहाग लगा था दाव पर, पर नारी बिलकुल ना घबराई थी
हौसला देती शौहर को, फिर आँखे उसकी भर आई थी
डरती तो वो भी मन ही मन में, छोटे जीवन में
क्या करती बेटी थी, बहन थी किसी को चोट जो गहरी खाई है
राखी हाथो में लेकर राह तख्ती थी, बहना रो भी न पाई थी
कहती भाई गया माँ के धोरे इसकर मैं वो राखी वापस ले आई थी
आज उसने जाना जिससे लडती रहती दिनभर, वो कितना बलशाली
बस इतना सोचा एक नहीं हजार हैं भाई, तब निंद्रा सुकूं की आई थी