एक कवि जब प्रेम पत्र लिखने की कोशिश करता है…
एक दफा मेरी मौहब्बत का तू ऐतबार कर
ज्यादा ना सही मुझे थोड़ा सा ही प्यार कर
क्या फर्क पड़ता है दस्तूर क्या है शहर का
अब यकीं कर मेरा या तू खुद इजहार कर
बहुत दिन हो चले , इन्हें मुस्कुराते देखकर
ये फूल शर्माएं , आज इस तरह श्रृंगार कर
रिश्ता पुराना है , समंदर की दो लहरों का
अब तू आज कर , चाहे कल इकरार कर
कब से अकेला हूँ , आ साथ चलें दूर तक
गुनी की दास्ताँ पर, कुछ तो तू विचार कर
#गुनी…