हम सब एक हैं
हिन्दू मुस्लिम को जोड़ जोड़कर मैं परिवार बनाना चाहता हूँ
काम आये यहाँ सब सबके बस वो आधार बनाना चाहता हूँ
जो पीते रहते मदिरा, घर की न सोचे वीरा रहे घर में कलेश
मैं ऐसे मेरे मित्रो के दिल में प्रेम का व्यापर चलाना चाहता हूँ
करते रहते इर्ष्या द्वेष, बनाते पंडित सा भेष करे ढोंग दिखावा
ऐसे केसरिया रंगों को मालिक का दरबार दिखाना चाहता हूँ
सत्ता के लालच में जो जोड़े हाथ समय आने पर पीठ दिखाते
इनको सीमा पर होते हकीकत के समाचार दिखाना चाहता हूँ
समझें फिजूल अगस्त ध्वजारोहण को , घर बैठे छुट्टी मनाते हैं
बस मैं दिल में इनके भारत माँ के प्रति प्यार जगाना चाहता हूँ
चाहे हो धूप या हो कितनी भी अब गर्मी, डटे रहते ये सीमा पर
सीमा पे इन वीरो की खातिर सावन की बहार लाना चाहता हूँ
न सोचे घर की, ध्यान रहे न है इनका है एक परिवार यहाँ पर
कोई कुछ समझे मैं हर सैनिक को अपना यार बनाना चाहता हूँ
घर में आकर काटे शीश , मेरे बंधू और सीमा रक्षक जवानो के
इन कुकर्मियो को मैं अपनी तलवार की धार दिखाना चाहता हूँ
चूहे तो डर जाते शेर की एक दहाड़ पर भारत भी अब शेर है
समझो मेरी बात मैं भारत के दुश्मन को हार दिखाना चाहता हूँ
दिन और रात मेहनत करते फिर भी भूखे पेट ही सो जाते हैं जो
इन लाचार गरीबो को मैं तीनो वक़्त आहार खिलाना चाहता हूँ
संघर्ष की लड़ाई लड़ते किसी दिवार किसी परेशानी से न डरते
बुझदिलो को मैं वीरो ने खाए वो छाती के वार बताना चाहता हूँ
खूब लड़ी लड़ाईयां हमने कुछ मिला न हमको ये इतिहास बताता है
न हो द्वन्द अब , मैं बस ईर्ष्या की खड़ी ये दीवार गिराना चाहता हूँ
दिल्ली सत्ता की गद्दी पर बैठे न खुद कुछ करते न करने देते हैं
अब सिंह के सिंहासन पे महाराणा सा घुड़सवार पाना चाहता हूँ
लुटती माँ बहनों की आबरू को समझे बस एक छोटी सी बात
सहन नहीं होता मैं इनको काली का किरदार दिखाना चाहता हूँ
न भाता है देशप्रेम न राष्ट्रप्रेम उनको तो बस बेबी डोल ही भाती है
आगे न हो ऐसा हर बच्चे को मैं भगत सा सरदार बनाना चाहता हूँ
खूब माना अहिंसा परमोधर्म मगर इस अभिमानी को प्रेम न भाता है
आज मैं भारत देश को असली जीत का दावेदार जताना चाहता हूँ
खो दिया है लुटा दिया है हमने सारा खजाना स्विस बैंक की खान में
मैं भारतीय नाम-गुनी स्वमुख से राष्ट्रप्रेम का प्रचार कराना चाहता हूँ
#गुनी …